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जेएमडी डेस्क: हिन्दुस्तान की सरज़मी पर पैदा हुई अज़ीम हस्ती जिन्होंने संघर्ष के सफर पर चलकर कामयाबी का ऐसा मुकाम हासिल किया…कि उनका नाम इतिहास के पन्नों पर दर्ज हो गया… मिसाल के तौर पर उनकी जीवन गाथा आने वाली नस्लों को भी प्रेरित करती रहेंगी… हम बात कर रहे हैं भारत के तीसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की…जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद गुलजारी लाल नंदा को देश का कार्यवाहक प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया था और फिर तारीख थी 9 जून 1964 जब लाल बहादुर शास्त्री  ने देश के तीसरे प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली… लाल बहादुर शास्त्री 19 महीने तक भारत के प्रधानमंत्री रहे, इन 19 महीनों में उन्होंने दुनिया को भारत की ताकत का एहसास कराया। हरित क्रांति और दुग्ध क्रांति के जनक शास्त्री जी ने 1965 के युद्ध में पाकिस्तान के अहंकार और भ्रम को हमेशा के लिए तोड़ दिया और ताकत के जोर पर पाकिस्तान का कश्मीर को हथियाने का सपना चूर-चूर कर दिया था। 1965 के युद्ध में पाकिस्तान के जनरल अयूब खान को कदमों में झुकाकर उन्होंने अपना कद सबसे ऊंचा कर लिया था। शास्त्री जी को उनकी सादगी के लिए जाना जाता था। 1965 के बाद वो वक्त था जब पाकिस्तान को अपने फौलादी इरादे से करारा जवाब देने वाले शास्त्री जी का कद और ताकत दोनों बढ़ चुके थे। उनके कद और नेतृत्व क्षमता की हंसी उड़ाने वाले ये देख रहे थे कि शास्त्री जी को देश के नए हीरो की तरह देखा जाने लगा था। उनका नारा ‘जय जवान जय किसान’ काफी लोकप्रिय हो चुका था। एक बार जब उनके बेटे को गलत तरह से प्रमोशन दे दिया गया तो शास्त्री जी ने खुद उस प्रमोशन को रद्द करवा दिया। बतौर ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर उन्होंने ही इस इंडस्ट्री में महिलाओं को बतौर कंडक्टर लाने की शुरुआत की। इसके अलावा प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज की बजाय पानी की बौछार का सुझाव भी उन्हीं की देन है। आप आज परिवहन में जो महिलाओं के लिए आरक्षित सीट देखते हैं उसकी शुरूआत भी लाल बहादुर शास्त्री ने की थी। उन्होने प्रधानमंत्री रहते हुए देश को विकास और गौरव की नईं ऊचाइयों पर पहुंचाया.. भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान शास्त्री जी 9 साल तक जेल में रहे थे। असहयोग आंदोलन के लिए पहली बार वह 17 साल की उम्र में जेल गए, लेकिन बालिग ना होने की वजह से उन्हें छोड़ दिया गया था। दौर था 1940 का और उस दौरान लाला लाजपत राय की संस्था लोक सेवक मंडल स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों की आर्थिक मदद किया करती थी। उसी दौरान लाल बहादुर शास्त्री जेल में थे तो उन्होंने अपनी मां को एक ख़त लिखा। इस खत में उन्होंने पूछा था कि क्या उन्हें संस्था से पैसे समय पर मिल रहे हैं और वे परिवार की जरुरतों के लिए पर्याप्त हैं। शास्त्री जी कि मां ने जवाब दिया कि उन्हें पचास रुपए मिलते हैं जिसमें से लगभग चालीस खर्च हो जाते हैं और बाकी के पैसे वो बचा लेती हैं। जिसके बाद शास्त्री जी ने लोक सेवक मंडल को भी एक पत्र लिखा और धन्यवाद देते हुए कहा कि अगली बार से उनके परिवार को चालीस रुपए ही भेजे जाएं और बचे हुए पैसों से किसी जरूरतमंद की मदद कर दी जाए। शास्त्री जी के जीवन से जुड़ा एक और दिलचस्प किस्सा ये है कि जब स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान वो जेल में थे तब उनकी पत्नी चुपके से उनके लिए दो आम छिपाकर ले आई थीं। इस पर खुश होने की बजाय उन्होंने उनके खिलाफ ही धरना दे दिया। शास्त्री जी का तर्क था कि कैदियों को जेल के बाहर की कोई चीज खाना कानून के खिलाफ है। नैतिकता के सागर में डूबे शास्त्री जी को एक बार जेल से बीमार बेटी से मिलने के लिए 15 दिन के पैरोल पर छोड़ा गया। लेकिन बीच में ही बेटी के गुजर जाने की वजह से शास्त्री जी 15 दिन के पैरोल अवधि पूरी होने से पहले ही जेल वापस आ गए..शास्त्री जी आज भी हर दिल में एक प्रेरणा बनकर मौजूद हैं… लाल किले से लाल बहादुर की वो हुंकार आज भी प्रत्येक देशवासी के दिलों में जोश भर देती है और इतने साल बाद भी लोगों की आंखें भारत के लाल की याद में नम हो जाती हैं….

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