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घर संभालना पत्नी का और घर से बाहर काम करना पति का, बीते लंबे वक्त से समाज का आदर्श समझा जाने वाला समीकरण रहा है। शादी के बाद महिलाएं अगर घर से बाहर काम नहीं कर रहीं तो उनमें से ज्यादातर खुद को ओनली अ हाउस वाइफ कहकर इंट्रोड्यूस कर देती हैं। लेकिन मद्रास हाईकोर्ट में हाल ही में एक केस के दौरान जज ने हाउस वाइफ्स के लिए हाउस मेकर शब्द का इस्तेमाल किया और जो फैसला सुनाया, उसकी कहानी ओनली अ हाउस वाइफ से थोड़ी अलग है।

लीगल न्यूज साइट लाइव लॉ के मुताबिक, मद्रास हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान महिलाओं के हक में बड़ा फैसला सुनाया है। जिसमें उन्होंने कहा कि एक पत्नी का अपने पति की खरीदी गई संपत्ति में बराबर अधिकार होता है। पत्नी की ओर से निभाई गई जिम्मेदारियों की तुलना पति की 8 घंटे की नौकरी से नहीं की जा सकती, पत्नी घर संभालती है और ये काम किसी भी मायने में पति की 8 घंटे की शिफ्ट से कम नहीं है।

अब मामला क्या था ये भी समझ लेते हैं। लाइव लॉं की रिपोर्ट के मुताबिक, मद्रास कोर्ट में चल रहे इस मामले में कन्नियन नायडू नाम के व्यक्ति ने अपनी पत्नी पर उसकी खरीदी हुई संपति पर कब्जा करने और एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर चलाने का भी आरोप लगाया था। उनका कहना था कि उनकी पत्नी उस संपति को हड़पना चाहिती है।

दरअसल, कन्नियन और कंसाला की शादी 1965 में हुई थी, दोनों के तीन बच्चे हैं- दो बेटे और एक बेटी। कन्नियन ने 1983 से 1994 के बीच सऊदी अरब में नौकरी की थी। भारत लौटने के बाद उसने शिकायत दर्ज कराई थी कि उसकी पत्नी उसकी कमाई से खरीदी गई संपत्तियों को हड़पना चाहती है। पति-पत्नी तब अलग रहने लगे थे। 2016 से कोर्ट में मामला चल रहा था। इस बीच कन्नियन की मौत हो गई। जिसके बाद उसके बच्चों ने ये केस लड़ा। महिला ने अपने पति की संपत्ति में हिस्सा मांगा था।

वहीं कन्नियन की पत्नी ने कहा कि वो इन सभी संपत्तियों में बराबर की हकदार है, क्योंकि पति के विदेश में रहने के दौरान उसने परिवार की देखभाल की थी, इस कारण वो खुद नौकरी भी नहीं कर सकी थी। द इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायधीश ने कहा कि एक पत्नी, होममेकर होने के नाते कई टास्क करती है। वो घर की मैनेजर, शेफ, घरेलू डॉक्टर और फाइनेंशिल स्किल्स के साथ घर की होम इकोनॉमिस्ट भी होती है।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले में मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस कृष्णन रामासामी ने कहा कि प्रतिवादी महिला एक गृहिणी है, हालांकि उसने कोई प्रत्यक्ष वित्तीय योगदान नहीं दिया, लेकिन उसने बच्चों की देखभाल की, घर को संभाला था। महिला ने घरेलू कामकाज में जरुरी रोल प्ले किया। जिसकी ही वजह से उसका पति विदेश में रहकर नौकरी कर पाया, महिला ने अपने सपनों का बलिदान दिया और अपना पूरा जीवन परिवार और बच्चों की देखभाल में बिताया।

आम तौर पर शादी के बाद पत्नी बच्चों को जन्म देती है, उनका पालन-पोषण करती है और घर की देखभाल करती हैं। इस प्रकार वह अपने पति को घर की जिम्मेदारियों से मुक्त कर देती हैं जिससे वो बाहर जाकर नौकरी कर सके।

जज ने कहा कि एक पत्नी, एक गृहिणी होने के नाते कई काम करती है- जैसे मैनेजमेंट स्किल के साथ प्लानिंग करना, बजट बनाना, एक शेफ के रूप में खाना बनाना, एक घरेलू डॉक्टर की तरह देखभाल करना, इकोनॉमिस्ट की तरह घर के बजट की प्लानिंग, बचत करना। महिला ये सब काम करके घर में आरामदायक माहौल बनाती हैं और परिवार के प्रति अपना योगदान देती है। जब पति और पत्नी को परिवार की गाड़ी के दो पहियों के रूप में माना जाता है, तो पति की कमाई में पत्नी बराबर की हकदार है।

अदालत ने कहा कि उन्होंने अपने संयुक्त प्रयास से जो कुछ भी कमाया उस पर पत्नी का भी हक है। भले ही गृहिणी की ओर से किए गए योगदान को मान्यता देने के लिए अब तक कोई कानून नहीं बनाया गया है, लेकिन अदालत इस योगदान को अच्छी तरह से पहचानती है।

हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को पलटते हुए कुछ अचल संपत्ति में दोनों के लिए समान हिस्सेदारी का आदेश सुनाया। इससे पहले निचली अदालतों ने पति के दावे को स्वीकार करते हुए उसे ही संपत्तियों का असली मालिक माना था।

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