
जो श्रद्धा से किया जाए, वही श्राद्ध है… पूर्वज की आत्मा की शांति के लिए जो भी श्रध्दापूर्वक किया जाए वही सही मायने में श्राध्द है… पितृ पक्ष, 16 दिन का वो ड्युरेशन है जिसमें हिन्दू धर्म के लोग अपने पितरों को दिल से याद करते हैं और उनके लिये पिण्डदान करते हैं… इसे ‘सोलह श्राद्ध’, ‘महालय पक्ष’, ‘अपर पक्ष’ के नामों से भी जाना जाता है…पितृ पक्ष में किए जाने वाले कार्य पूर्वजों को ये बताने का एक तरीका हैं कि वो अभी भी परिवार का एक अनिवार्य हिस्सा हैं… पितृपक्ष में पूर्वजों का आशीर्वाद लिया जाता है और गलतियों के लिए क्षमा मांगी जाती है… इन दिनों में पूर्वजों या पितरों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं और उनके लिये पिण्डदान करते हैं… पितृ पक्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होता है और आश्विन मास की अमावस्या तक चलता है…
पितृ पक्ष का महत्व क्या है?
वाल्मीकि रामायण में सीता द्वारा पिंडदान देने से दशरथ की आत्मा को मोक्ष मिलने का संदर्भ आता है… अपने वनवास काल में भगवान राम ,लक्ष्मण और सीता पितृ पक्ष के दौरान श्राद्ध करने के लिए गया धाम गये थे… मार्कण्डेय और वायु पुराण में कहा गया है कि किसी भी परिस्थिति में पूर्वजों के श्राद्ध से मुंह नहीं फेरना चाहिए। श्राद्ध वैदिक काल के बाद से शुरू हुआ… वसु, रुद्र और आदित्य श्राद्ध के देवता माने जाते हैं… प्रत्येक व्यक्ति के तीन पूर्वज पिता, दादा और परदादा क्रम से वसु, रुद्र और आदित्य के समान माने जाते हैं… माता का श्राद्ध नवमी को किया जाता है। जिन परिजनों की अकाल मृत्यु हो उनका श्राद्ध चतुर्दशी को किया जाता है। साधु और सन्यासियों का श्राद्ध द्वादशी को और जिन पितरों की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती उनका अमावस्या के दिन श्राद्ध किया जाता है। इस दिन को ही सर्व पितृ श्राद्ध कहा गया है।
क्यों खिलाते हैं कौवे और कुत्ते को अग्राशन
पितृ पक्ष में पिण्डदान के दौरान पांच तरह के अंश निकालते हैं जिनको कौवा, कुत्ता, गाय, चीटी, देवबली को किया जाता है… जैसा कि हमने बताया कि कौवा पितरों का वाहक होता है… इसी तरह ही गाय को धर्म का स्वरूप माना जाता है… ऐसे ही चीटी को जीव की तृप्ति के लिए अंश देते हैं… और कुत्ते के लिए दिए जाने वाले अंश का महत्व ये भी माना जाता है कि जब पाण्डवों ने स्वर्ग के लिए प्रस्थान किया था तो कुत्ता स्वर्ग द्वार तक उनके साथ गया था…. और भैरव जी की सवारी भी माना जाता है… और पांचवा अंश देवताओं के लिए निकाला जाता है जिससे वो प्रसन्न होकर पितरों को उचित स्थान प्रदान करें…
पितृपक्ष में क्या न करें
शास्त्रों में प्याज और लहसुन को ‘तामसिक’ माना जाता है, जो हमारी इंद्रियों को प्रभावित करती है… पितृपक्ष की अवधि के दौरान, खाने में प्याज-लहसुन का इस्तेमाल करने से बचना चाहिए… पितृपक्ष के दौरान कोई भी जश्न या उत्सव नहीं मनाना चाहिए और ना ही इसका हिस्सा बनना चाहिए. इस अवधि में किसी भी तरह का जश्न मनाने से आपके पूर्वजों के प्रति आपकी श्रद्धा प्रभावित होती है. पितृपक्ष की अवधि को अशुभ माना जाता है, इसलिए इस दौरान कुछ भी नया शुरू ना करने की सलाह दी जाती है. इस दौरान परिवार के सदस्यों को कुछ भी नई चीज नहीं खरीदनी चाहिए.